sukhiram & dukhiram
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टूटा हुआ तारा नहीं, तक़दीर का मारा नहीं !
यारो ‘मैं’ कलाकार हूँ, कोई बेचारा नहीं।।
नगर-नगर, बस्ती-बस्ती घूमता हूँ लेकिन
मेरा भी एक घर है, ‘मैं’ बनजारा नहीं।।
सदियों से इस जहां में होता रहा है दोस्तों
जो खुश न कर सके उसकी पौ बारा नहीं।।
मरते-मरते माँ नें मुझसे बस इतना कहा,
”बेटा कुछ भी करना लेकिन बंटवारा नहीं।”
धड़कन में रंग बसे हैं, सांसों में शायरी
मैं महज़ ‘अरविन्द’ हूँ ग़ालिब नहीं आरा नहीं।।
माना कि वक़्त नें मुझे उठनें नहीं दिया
पर ये भी याद रख कि मैं अभी हारा नहीं।।
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